मूल कहानी: The Silver Lining
कथाकार : Chaman Nahal
अनुवादक : कुबेर
मनखे के मन के भाव के थाह लगा पाना अउ अनुमान लगा पाना बड़ा कठिन काम होथे। सदा हाँसत- मुस्कात रहने वाला, हरियर मन वाले आदमी के हिरदे भीतर भारी दुख हो सकथे, जेकर कीरा ह भीतरे-भीतरे वोला खावत रहिथे अउ जबकि मनहूस, जड़बुद्धि दिखने वाला आदमी ह भीतर ले सुखी अउ परम आनंदित हो सकथे। मनुष्य के जीवन ह बड़ अद्भुत होथे, छिन भर के सुख-शांति ह मन ल जीत लेथे।
अभी-अभी पहाड़ म एक ठन निजी अतिथि-गृह म ठहरे के मोला बड़ आनंददायक अनुभव मिलिस। मोर एक मित्र ह मोला बहुत जोर लगा के विहिंचेच् ठहरे बर ये कहिके केहे रिहिस हे कि वइसन ढंग के अतिथि-गृह मन म जउन-जउन सुविधा मिलथे, वो सब उहाँ मिलही; विज्ञापन म दावा करके सुविधा ल कम कर देय, अइसन नहीं। वो ह पोस्ट आफिस, बाजार, बस स्टैण्ड ले नजीक हे अउ दुनिया भर के हल्लागुल्ला ले दुरिहा बिलकुल अलग हे। उहाँ ले पहाड़ के सुंदर दृश्य घर बइठे दिखथे। वोकर रंधनीखोली (रसोई-घर) ह बड़ा शानदार हे (मतलब उहाँ स्वादिष्ट भोजन मिलथे) अउ जइसे कि हर जगह मिलथे, बड़ सुंदर-मजेदार मेजबान (होस्टेसेस) महिला मन ह वोकर देखरेख करथें।
मित्र ह जइसन-जइसन दावा करे रिहिस, मोेला बिलकुल वइसनेच् मिलिस। फेर खासतौर ले, वो घर के मेजबानी करने वाली महिला, वोकर घरवाला अउ वोकर छोटकुन बेटी, वास्तव म ये बात ल सिद्ध कर दिन, अउ मोर बड़ आवभगत करिन।
श्रीमती भंडारी, घर के मालकिन ह, पहुँचते सात तुरते मोर व्यवस्था म लग गिस। मोर समान के बेसाव करिस, मोर रहे के खोली अउ वोकर बारे म सब जानकारी दिस, बिन देरी करे एक कप मजेदार कॉफी लान के दिस अउ तब बड़ सहजता ले मोर संग अनौपचारिक ढंग ले बात करत मोर बारे म अउ मोर आय के कारण के जानकारी लिस। वो परिवार ह सब तरीका ले मोर मन ल जीत लिस अउ मोला अइसे लगे लगिस कि मंय ह वोमन ल बरसों पहिली ले जानत हँव।
जब वो मन बात करत रिहिन, मोर ध्यान ह छोटकुन गुड़िया डहर गिस जउन ह सोफा के पीछूडहर लुकाय के कोशिश करत रहय। वो ह आठ साल के रिहिस होही अउ अपन माँ के समान बहुत सुंदर अउ आकर्षक रिहिस हे। वोकर बाल ह चीनी फैसन म छोटे-छोटे, सुंदर ढंग ले कटे रिहिस। वो ह जीन्स अउ आधा बांह वाले ढीला-ढाला जर्सी पहिरे रिहिस, अउ जंगल के छोटे असन राजकुमारी कस दिखत रिहिस। फेर वो ह एकदम डरे-डरे कस दिखत रहय अउ मोर ले बचे के उदिम करत रहय।
वोला देख के मंय ह मुसका देव। वो ह मोर डहर टकटकी लगा के देखत रहय। मंय ह पूछेव – ’’तोर का नांव हे?’’ अउ इशारा ले वोला अपन डहर बुलायेंव।
वो गुड़िया ह तुरते सचेत हो गे, अपन मुड़ी ल डोलाइस अउ जिहाँ के तिहाँ खड़े रिहि गे। मंय ह वोला एक घांव अउ बुलायेंव – ’’हेलो! बेटा, मोर तीर आ जा।’’ वो ह लजा गे, अउ फेर अपन मुड़ी ल डोलाइस। छिन भर म वो ह दंउड़त बाहिर कोती निकल गे। मोला लगिस कि वो ह रोवत रिहिस।
अचानक मोला लगिस कि मोर व्यवहार ह कोनों ल बने नइ लगिस, खोली म सब चीज ह जिंहा के तिहाँ ठहर गे हे, मंय ह भंडारी मन डहर पलटेंव, वो दुनों झन मन गुस्सावत रिहिन, दुनों के चेहरा म दुख अउ चिंता के भाव देखेंव। श्रीमान भंडारी ह अपन घरवाली के हाथ ल कंस के पकड़ लिस, किहिस – ’’ढांढ साहब, माफ करहू। आप मन देखेव कि हमर बेटी ह न तो कुछू बोल सके, न कुछू सुन सकय, विही पाय के वो ह आप तीर नइ आइस।’’
दबे जुबान मंय ह उँकर मन ले माफी मांगेंव। मोला संशय हो गे अउ आगू कुछू घला बोले के नइ सूझिस। वो गुड़िया के प्रति अपन व्यवहार ले मंय ह झेप गेंव, जउन ह सचमुच म मोर मित्रता के प्रस्ताव के प्रति कोनों तरीका ले भाव प्रगट करे के स्थिति म नइ रिहिस। मोला दुख होइस कि मंय ह वो गुड़िया अउ वोकर माता-पिता के प्रति गलती कर परेंव।
मंय देखेंव कि तकरीबन रोज वो बिचारा माता-पिता संग इही स्थिति ह दुहराय। रोज एक-दू झन मेहमान जातिन अउ संगेसंग अतका झन आतिन। अउ पहिलिच् मुलाकात म, नइ ते कुछ देर रहि के उँकर ध्यान ह वो लइका डहर जातिस, वोकर सुंदरता अउ भोलापन ह सब ल खींचय, अउ सब झन वोकर ले गोठियाय बर, वोकर ले मेलजोल बढाय बर चाहंय, अइसने रोज होवय। अउ नतीजा वइसनेच् होवय, लइका के थोरिक देर बर मुसकाना, लजाना, अउ अपन माता-पिता के चेहरा म दुख अउ दरद के भाव छोड़ के रोवत-रोवत बाहिर कोती भाग जाना। जादातर आवइया मन अक्सर बड़ा लंबा-चौड़ा खुराजमोगी करंय कि लइका के ये अपंगता ह कइसे होइस, जनम से ये ह अइसने हे कि कोनों अलहन के सेती अइसे होय हे; कोनों-कोनों मन अपन परिवार म होय अइसने अपंगता के चर्चा करंय अउ पूछंय कि का इलाज चलत हे।
ये सवाल मन के जवाब देय म माता-पिता ल परेशानी अउ अपार दुख होवय। जउन बात ह मोला कचोटय, वो रिहिस ये स्थिति के सबले खराब हिस्सा, कि लड़की ह पथराय नजर ले देखय, वोकर आँखी म डर अउ दया के भाव रहय काबर कि वो ह ये बात ल जानय कि ये सब चर्चा ह विही ल ले के होवत हे। घर के चारों मुड़ा दंउड़े या फेर नौकर मन संग खेले के अलावा वोकर तीर अउ कोनों काम नइ रहय। वो ह स्कूल नइ जावय, काबर कि उहाँ वइसन मन के पढ़े-पढ़ाय के कोनों व्यवस्था नइ रिहिस। वोला घरे म पढ़ाय के कोशिश करे गिस फेर वोमा सफलता नइ मिलिस। जब कोनों वोकर कान म जोर से चिल्लातिस तब वो ह हल्का-हल्का जरूर सुन पातिस, फेर समझ नइ पातिस अउ कभू-कभू अस्पष्ट ढंग ले ’मा..मा’ या ’अंन..ल’ केहे के अउ जानवर मन सरीख चिल्ला के रोय अउ हँसे के सिवा वो ह अउ कुछू नइ गोठिया पातिस। अपन बात केहे के वोकर सारा काम हाथ के इशारा से चलय अउ जब कोनों वोकर इशारा ल नइ समझ पातिस, वोला अपार दुख होतिस।
रोज-रोज के अइसन अपमान अउ दुख ले बचाय खातिर एक दिन मंय ह भंडारी दम्पति ल एक ठन सुझाव देयेंव, जउन ल करे बर वो मन मान गें। हमन तय करेन कि एक ठन कागज टाइप करके, वोला बकायदा सीलबंद लिफाफा म, जइसने कोनों नवा मेहमान आथ्ंाय, वोला थमा दिया जाय। कागज म लिखाय रही – ’हमर बेटी ह गूंगी अउ बहरी हे। जल्दबाजी म वोकर संग दोस्ती करे के कोशिश म आप वोला दुख पहुँचा सकथव। वो ह न तो कुछू समझ सकय अउ न कोनों बात के जवाब दे सकय। आपसे निवेदन हे कि वोला समय देवव ताकि वो ह आप ल समझ अउ पहचान सकय। धन्यवाद।’
बच्ची ल अस्पताल म भरती कराय के संबंध म बात आइस, श्रीमती भंडारी ह ये कहिके येकर समाधान कर दिस के वो ये बात म राजी नइ हे। (चिट के बारे म) वोकर अनुसार, जउन आदमी मन चार दिन के मेहमान बनके इहाँ रहे बर आथें, वो मन ल ये चिट देना उचित नइ होही। तभो ले वो ह बच्ची ल आने वाला अनचिन्हार दुख अउ तकलीफ ले बचाय खातिर अपन सहमति दे दिस।
ये उपाय ह उम्मीद ले जादा कारगर साबित होइस। हालाकि कुछ सवाल अभी घला माता-पिता ल दुखी कर देवंय, कि बिचारी बच्ची ह अलग-थलग पड़ गे। फेर पीछू चल के धीरे-धीरे बच्ची ह खुदे बहुत अकन मेहमान मन संग हिलमिल गे। भंडारी मन राहत के सांस लिन कि चलो, फिलहाल एक ठन समस्या के तो हल निकलिस।
एक दिन उहाँ एक झन अपरिचित मेहमान आइस।
मंझनिया बीते पीछू के बात आवय, जब मंय ह घर मालिक संग मोर अगले दिन खतिर खाना जोरे बर गोठियावत रेहेंव, काबर कि अगले दिन मंय ह तीरतखार के गुफा मन ल देखे बर जाय के योजना बनाय रेहेंव। घर मालिक ह आने वाला नवा मेहमान बर, जउन ह पूरा एक सीजन बर एक ठन खोली बुक कराय रिहिस, अउ अब वो ह इही बखत आने वाला रेलगाड़ी म कभू घला आ सकत रिहिस, व्यवस्था करे के हड़बड़ी म रिहिस।
अउ सचमुच म एक झन जवान ह; कुली संग, जउन ह वोकर समान ल लानत रिहिस, पहुँच गिस। मेहमान युवक, जउन ह एकदम ढीलाढाला, उतरे कंधा वाले सूट अउ झोलंगा छाप पैजामा पहिने रिहिस, मुश्किल से पच्चीस साल के रिहिस होही। सफर के सेती वो ह एकदम जकड़हा कस (अव्यवस्थित) दिखत रिहिस, वोकर बाल, वोकर पनही सब ल व्यवस्थित करे के जरूरत रिहिस। फेर वोकर चेहरा बड़ प्रसन्नचित्त अउ आँखीं मन चमकदार रिहिस।
भंडारी जी ह आगू बढ़ के पूछिस – ’’शायद आप श्री डेविड हरव।’’
युवक ह नजीक ले वोकर चेहरा ल देखिस अउ हँस के मुड़ी ल नवा दिस।
’’कृपया आप के खातिर 18 नं. के खोली म सब कुछ बिलकुल तियार हे।’’
युवक ह वोला फेर देखिस, हँसिस अउ मुड़ी ल नवा दिस। कुली ल वो ह वोकर मेहनताना दिस, जउन ह वोला सलाम ठोक के, काबर कि वोला बाकी के पइसा ल वापिस नइ मांगे गिस, गायब हो गे। युवक ह मोर डहर मिताई के भाव ले देखिस अउ एक ठन बड़े असन रजिस्टर के आगू म बइठ गे जउन ल मकान मालिक ह वोकर आगू म सरकाय रिहिस, जउन म वोला अपन आय के कारण अउ दिन-तिथि लिखना रिहिस।
विही समय वोला टेबल ऊपर वोकर नाम लिखे विही चिट वाले सीलबंद लिफाफा मिलिस। वो ह फटाफट वो लिफाफा ल खोल डरिस। संजोग से विही समय वो खोली म मकान मालकिन के आना हो गे। वो ह अपन पति ले पूछिस कि इही ह वो आने वाला नवा मेहमान तो नो हे, अउ आगू बढ़़ के वो ह वो जवान ले हाथ मिलाइस।
’’डेविड जी! आपके यात्रा बने-बने पूरा होइस?’’ वो ह सुंदर अकन मुसका के पूछिस।
युवक ह हँस के अनमना ढंग ले मुड़ी ल नवा दिस, जइसे कहत होय कि – ’न जादा बने, न जादा खराब।’’
’’आप तुरंत गरम पानी से नहाना चाहहू कि पहिली गरमागरम कॉफी पीना चाहहू?’’
युवक ह अपन होंठ मन ल उला दिस, अपन खांद मन ल उचका दिस जइसे कहत होय कि दोनों म कुछू होय, चलही। मकान मालिक अउ मकान मालकिन, दुनों झन ये अनुमान लगाइन अउ एकमत होइन कि नवा मेहमान ह बड़ा अक्खड़ अउ घमंडी हे, काबर कि वो ह उँकर मन के विनम्र भाव ले पूछे गेय कोनों बात के जवाब नइ देवय।
इही बीच वो युवक ह लिफाफा के भीतर रखे चिट ल निकाल के पढ़े लगिस। पढ़ते सात वो ह अचंभित हो के येती-वोती देखे लगिस। वो समय छोटे बच्ची, प्रमोदिनी ह आंगन म खेलत रिहिस। वो ह फूल के क्यांरी मन तीर बइठे रिहिस। युवक ह हमर मन कोती मुसका के देखिस अउ वोकरे कोती दंउड़ गिस।
’’अब तो ये ह बड़ा विचित्र हो गे’’ – श्रीमती भंडारी ह चिल्ला के वोला रोकिस, किहिस – ’’कतका जंगली हे।’’
’’ये तरीका ले वोला हमर निवेदन के तिरस्कार नइ करना चाही।’’ मकान मालिक ह थोरिक शांत भाव म बोलिस। महूँ ह थोरिक उदास हो गेंव। सचमुच म अजनबी मन ले प्रमोदनी ल दुख अउ हीनता ले बचाय खातिर करे गे हमर उपाय ये समय फेल होवत दिखिस।
थोरिक देर बाद हम सबो झन बाहिर बरामदा म आ गेन। मोर अनुमान रिहिस हे कि ये घटना ले माता-पिता अउ बच्ची सब ल अपार दुख होही।
बाहिर आ के हमर सामना जउन दृश्य ले होइस वोकर हम जरा भी कल्पना नइ करे रेहेन।
युवक ह दूबी वाले मैदान म लेटे रिहिस अउ प्रमोदिनी ह वोकर गोद म बइठे रिहिस। वो ह वोला फूल मन ल देखावत रिहिस।
अउ अचानक, बड़ जोरदार, फटाका फूटे कस – प्रमोदिनी के जोरदार हँसी के आवाज ह हवा ल चीरत निकल गे। माता-पिता मन अचरज अउ चकित हो के एक-दूसर कोती देखे लगिन।
श्रीमती भंडारी ह किहिस – ’’कतरो साल ले हमर बच्ची ह अइसन हँसी नइ हँसे रिहिस।’’
हमन देखेन, वो दुनों झन एक-दूसर के हाथ धरे हमरे कोती आवत हें। प्रमोदिनी ह दंउड़ के अपन माँ से लिपट गे अउ मारे खुशी के चारों मुड़ा घूम-घूम के नाचे लगिस। वो ह ’मा-मा’ कहिके चिल्लाय लगिस अउ वो युवक डहर इशारा करे लगिस।
जइसे डेविड ह हमरेच् मदद करे बर आय रिहिस। जल्दी हमला पता चल गे कि वहू ह गूंगा अउ बहरा हे।
वोकर अजनबीपन, वोकर संदेहास्पद चुप्पी, अउ वो चिट ल पढ़ के अचानक वोकर बच्ची डहर दौड़ना, ये सब के कारण ह अब एकदम साफ हो गे। बात ल माने म हमला क्षण भर समय लगिस। तब दुनों अभिभावक मन वोकर ले क्षमा मांगिन, ये कहि के कि शुरू म वो मन वोला नइ समझ सकिन।
वो मन अनुमान लगा के गोठियात रिहिन, वो मन आधा बोलंय अउ बांकी ल इशारा म समझे-समझाय के कोशिश करंय। फेर वो युवक ल वोकर बोली ल समझे म जरा भी कठिनाई नइ होवत रिहिस। वो ह वोकर होठ के हिलई ल पढ़ लेवय। वो ह मुड़ी नवा के नइ ते मुड़ी डोला के उत्तर देवय, जादा कठिन सवाल के उत्तर देय बर वो ह पेन-कापी के मदद लेवय।
(बात अइसन आय; वो भैरा-कोंदा युवक ह भैरा-कोंदा मन के स्कूल म पढ़े रिहिस, अउ इहाँ घला भैरा-कोंदा मन बर स्कूल खोलेे के नाम से आय रिहिस, अउ आते सात प्रमोदिनी के रूप म वोला अपन पहिली विद्यार्थी मिल गिस।)
दूसर दिन श्रीमती भंडारी ह बिकट प्रसन्न रिहिस अउ बेफिकर लड़की मन कस खिलखिला-खिलखिला के हाँसत रिहिस। वो दिन वो ह भोजन म हमन ल उपरहा जैम, मक्खन अउ मदरस दिस। वो ह दुनिया के सबले सुखी औरत लगत रिहिस।
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कुबेर
कथाकार – कुबेर
जन्मतिथि – 16 जून 1956
प्रकाशित कृतियाँ
1 – भूखमापी यंत्र (कविता संग्रह) 2003
2 – उजाले की नीयत (कहानी संग्रह) 2009
3 – भोलापुर के कहानी (छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह) 2010
4 – कहा नहीं (छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह) 2011
5 – छत्तीसगढ़ी कथा-कंथली (छत्तीसगढ़ी लोककथा संग्रह 2013)
प्रकाशन की प्रक्रिया में
1 – माइक्रो कविता और दसवाँ रस (व्यंग्य संग्रह)
2 – और कितने सबूत चाहिये (कविता संग्रह)
3 – ढाई आखर प्रेम के (अंग्रेजी कहानियों का छत्तीसगढ़ी अनुवाद)
संपादित कृतियाँ
1 – साकेत साहित्य परिषद् की स्मारिका 2006, 2007, 2008, 2009, 2010
2 – शासकीय उच्चतर माध्य. शाला कन्हारपुरी की पत्रिका ’नव-बिहान’ 2010, 2011
सम्मान
गजानन माधव मुक्तिबोध साहित्य सम्मान 2012, जिला प्रशासन राजनांदगाँव
(मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह द्वारा)
पता
ग्राम – भोड़िया, पो. – सिंघोला, जिला – राजनांदगाँव (छ.ग.), पिन 491441
संप्रति
व्याख्याता,
शास. उच्च. माध्य. शाला कन्हारपुरी, वार्ड 28, राजनांदगँव (छ.ग.)
मो. – 9407685557
E mail : kubersinghsahu@gmail.com